Uttarakashi Aapda- उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में आई भीषण आपदा से एक साल पहले, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र की संवेदनशीलता को लेकर गंभीर चेतावनी दी थी। उपग्रह अध्ययनों पर आधारित यह रिपोर्ट उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) को सौंपी गई थी, जिसमें भारी बारिश और ग्लेशियर पिघलने से संभावित खतरे का जिक्र था। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस चेतावनी पर समय रहते कोई कार्रवाई हुई?
इसरो के आईआईआरएस उपग्रह से मिले डेटा के अनुसार, श्रीकंठ पर्वत (6133 मीटर) के ग्लेशियर लगातार पिघल रहे थे, जिससे घाटी के ऊपरी हिस्सों में छोटे-छोटे जलाशय बन रहे थे। वैज्ञानिकों ने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि अगर 4000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर भारी बारिश होती है, तो यह बड़े पैमाने पर तबाही का कारण बन सकती है।
Uttarakashi Aapda- इसरो के वैज्ञानिकों ने मीडिया से बात करते हुए पुष्टि की कि उन्होंने यह रिपोर्ट यूएसडीएमए को भेजी थी। हालांकि, जब मीडिया ने प्राधिकरण से इस बारे में पूछा, तो अधिकारियों ने किसी भी ऐसी रिपोर्ट की जानकारी होने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि प्राधिकरण के पास इसका कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।
उत्तराखंड आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव, विनोद कुमार सुमन ने भी इस बात से अनभिज्ञता जताई। उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी किसी रिपोर्ट की जानकारी नहीं है और अगर इस चेतावनी को गंभीरता से लिया गया होता, तो शायद धराली की इस विनाशकारी आपदा से बचा जा सकता था।
Uttarakashi Aapda- उपग्रह तस्वीरों में दिखी तबाही की कहानी

Uttarakashi Aapda- इसरो ने आपदा से पहले (13 जून) और बाद (7 अगस्त) की उपग्रह तस्वीरें भी जारी की हैं, जिनमें भागीरथी नदी का सामान्य बहाव और उसके बाद मलबे से भरे हुए इलाके का अंतर साफ देखा जा सकता है। धराली और हर्षिल घाटी जैसे क्षेत्र भूवैज्ञानिक रूप से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि हर्षिल घाटी में मिले 700 साल पुराने देवदार के पेड़ भी इस इलाके की नाजुक पारिस्थितिकी का संकेत देते हैं।
यह घटना प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारियों और समय पर मिली चेतावनियों पर तुरंत कार्रवाई करने की आवश्यकता को उजागर करती है, ताकि भविष्य में होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके।
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