Raj Maun Mela- भारत विभिन्न परंपराओं का देश है जहां हर प्रान्त और गांव की अपनी अलग संस्कृति है उसी तरह उत्तराखंड जो अपनी खूबसूरती और आस्था के लिए जाना जाता है यहां भी अपनी परंपरा और संस्कृति का वैसेह महत्व है, उत्तराखंड में कई ऐतिहासिक मेले आयोजित किए जाते हैं और जो पहाड़ी विरासत समेटे हुए हैं उनमे से एक है ऐतिहासिक राजमौण मेला।
राजमौण मेला यमुना की सहायक नदी अगलाड़ में राजमौण मेला हर्षोल्लास से मनाया जाता है,प्रत्येक साल जून के अंतिम सप्ताह में अगलाड़ नदी में मछली पकड़ने का सामूहिक त्योहार मनाया जाता रहा है, अगलाड़ नदी में मनाया जाने वाला यह मौण मेला लगभग 158 साल पुराना है, इतिहासकारों का मानना है कि यह मौण मेला 1866 में राजशाही काल में शुरू हुआ था, राजशाही काल में टिहरी नरेश मौण मेले में मौजूद रहते थे।
Raj Maun Mela- मौण मेला बड़े हर्षो उल्लास से मनाया
Raj Maun Mela- बीते शनिवार भी मौण मेला बड़े हर्षो उल्लास से मनाया गया, मेले में यमुना घाटी, अगलाड़ घाटी तथा भद्रीघाटियों के दर्जनों गांवों के साथ ही समीपवर्ती जौनसार के अलावा मसूरी तथा विकासनगर के ग्रामीण शामिल हुए।
इस दौरान ग्रामीणों ने एक अनुमान के मुताबिक करीब 60 क्विंटल से अधिक मछलियां पकड़ीं। मेले में लगभग साढ़े सात हजार से अधिक लोग मौजूद रहे।
बीते शनिवार को दोपहर बाद करीब ढाई बजे अगलाड़ नदी के मौणकोट नामक स्थान से मछलियां पकड़ने का सिलसिला शुरू हुआ, जो शाम लगभग साढे पांच बजे तक चलता रहा, लोगों ने अगलाड़ और यमुना नदी के संगम तक मछलियां पकड़ीं।
लालूर पट्टी खैराड़, नैनगांव, मरोड़, मताली, मुनोग, कैथ तथा भूटगांव के ग्रामीण टिमरू पाउडर लेकर ढोल-दमाऊ के साथ अगलाड़ नदी के मौण कोट नामक स्थान पर पहुंचे और जल देवता की विधिवत पूजा-अर्चना के साथ टिमरू पाउडर से सभी पांतीदारों का टीका करने के बाद टिमरू पाउडर नदी में डाला गया।
इसके बाद ग्रामीण मछलियां पकड़ने नदी में उतरे, मौणकोट से लेकर अगलाड़ व यमुना नदी के संगम स्थल तक लगभग चार किमी क्षेत्र में लोगों ने मछलियां पकड़ी और लगभग साढे पांच बजे मौण मेला संपन्न हो गया।
यह भी पढ़ें…