Husband Calls Wife “Second Hand”- हमारे देश में पति पत्नी के रिश्ते को प्यार भरोसे और मर्यादा का सबसे मजबूत संबंध माना जाता है लेकिन इस मामले में जो हुआ वो शर्मनाक है। एक व्यक्ति की तलाक की याचिका को खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है. कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामले में पति के ऊपर तीन करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है.
22 मार्च सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख ने अपने आदेश में कहा कि, यह राशि महिला को न केवल शारीरिक चोटों के लिए दिया जाता है बल्कि मानसिक पीड़ा और भावनात्मक पीड़ा के लिए दिया जा रहा है. कोर्ट ने फैसला पर अपना मुहर लगाते हुए कहा कि, महिला का आत्मसम्मान प्रभावित हुआ है.
Husband Calls Wife “Second Hand”- क्या है पूरा मामला
Husband Calls Wife “Second Hand”- जानकारी के अनुसार यह मामला अमेरिका के एक पति-पत्नी की है जिन्होंने जनवरी 1994 में मुंबई में शादी की और बाद में अमेरिका चले गए. 2005 में, कपल वापस मुंबई लौट आए और एक घर में रहने लगा जो उनके संयुक्त अधिकार में था.
हालांकि, 2008 में, पत्नी अपनी माँ के घर चली गई और पति 2014 में अमेरिका लौट गया. जुलाई 2017 में, महिला ने अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम (डीवीए) के प्रावधानों के तहत एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा दायर किया. महिला ने आरोप लगाया कि हनीमून के दौरान उनके पति ने उन्हें “सेकेंड हैंड” कहा था.
Husband Calls Wife “Second Hand”- पति द्वारा ‘सेकेंड हैंड’ कहने पर कोर्ट पहुंची पत्नी
Husband Calls Wife “Second Hand”- पत्नी ने अपने पति पर आरोप लगाया था कि हनीमून के दौरान उसके पति ने उसे सेकंड हैंड कह दिया था.पीड़िता ने अपनी याचिका में कहा कि उसके पति द्वारा उसके चरित्र पर लांछन लगाया गया है.
कथित तौर पर पति ने उसके अपने भाइयों के साथ-साथ अन्य पुरुषो के साथ अवैध संबंध रखने का इल्जाम भी अपनी पत्नी पर लगाया है. इन्ही सब मामलों में पत्नी ने अपने पति के खिलाफ शारीरिक और भावनात्मक शोषण का मामला दर्ज कराया.
Husband Calls Wife “Second Hand”- बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
पति के खिलाफ पत्नी द्वारा दर्ज की गई याचिका पर फैसला सुनता हुए न्यायमूर्ति शर्मिला ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का निष्कर्ष इस चर्चा पर आधारित था कि 1994 से 2017 तक लगातार घरेलू हिंसा की घटनाएं हुईं,
जिन्हें गलत नहीं ठहराया जा सकता. न्यायाधीश ने कहा, “मुझे इस अदालत के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए विवादित फैसले और आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है. पुनरीक्षण आवेदन खारिज किया जाता है.
ये केस बताता है की आज भी हमारे समाज में कितनी आपत्तिजनक सोच वाले पुरुषों का वजूद महिलाओं को मान सम्मान देने की बजाय उन्हें शोषित करते हैं।
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