Dr Alok Sagar Gautam- गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल) के भौतिकी विभाग की हिमालयी वातावरणीय एवं अंतरिक्ष भौतिकी शोध प्रयोगशाला के वैज्ञानिक डॉ. आलोक सागर गौतम को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रतिष्ठित वीनस ऑर्बिटर मिशन (Venus Orbiter Mission – VOM / शुक्रयान-1) से जुड़ने का अवसर मिला है। यह भारत का पहला शुक्र ग्रह ऑर्बिटर मिशन है, जिसे देश की ग्रह विज्ञान और अंतरग्रहीय अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि माना जा रहा है।
डॉ. गौतम 29–30 अक्टूबर 2025 को इसरो मुख्यालय, बेंगलुरु में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक में भाग लेंगे। इस बैठक में शुक्र ग्रह की सतह, उप-सतह, वायुमंडलीय और आयनोस्फेरिक प्रक्रियाओं तथा सूर्य के प्रभाव से होने वाले परिवर्तनों के विस्तृत अध्ययन की कार्ययोजना तैयार की जाएगी। मिशन के तहत उच्च-रिज़ॉल्यूशन रडार इमेजिंग, बादल संरचना, गैसों की गतिशीलता और सतही पुनर्गठन प्रक्रियाओं का गहन विश्लेषण किया जाएगा। यह अध्ययन पृथ्वी और शुक्र ग्रह के विकास के अंतर को समझने में अहम भूमिका निभाएगा।
Dr Alok Sagar Gautam- बैठक के दौरान मिशन से जुड़े प्रमुख शोध विषयों, डेटा विश्लेषण, और अकादमिक सहयोग पर भी चर्चा होगी। डॉ. गौतम अपने शोध कार्य का प्रस्तुतीकरण करेंगे और “शुक्र ग्रह के वायुमंडल की मॉडलिंग, रिट्रीवल तकनीकें, इमेज प्रोसेसिंग एवं सिमुलेशन, तथा अभिलेखीय आंकड़ों के विश्लेषण का महत्व” विषय पर पैनल चर्चा में शामिल होंगे।
डॉ. आलोक सागर गौतम पहले भी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक अभियानों का हिस्सा रहे हैं- वे 28वीं भारतीय अंटार्कटिका वैज्ञानिक अभियान (XXVIII ISEA) में शामिल रह चुके हैं, साथ ही साथोपंथ ग्लेशियर में ब्लैक कार्बन और एरोसोल्स की निगरानी से जुड़ी फील्ड स्टडी में भी उन्होंने योगदान दिया है। इसके अलावा उन्होंने STORM और CAIPEEX जैसे महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्यक्रमों में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और IITM पुणे के साथ मिलकर काम किया है।
Dr Alok Sagar Gautam- डॉ. गौतम ने कहा
“इस मिशन से जुड़ना मेरे लिए गर्व की बात है। यह न सिर्फ मेरे लिए बल्कि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा, जिससे वे अंतरिक्ष विज्ञान और ग्रह अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ सकेंगे।”
Dr Alok Sagar Gautam- यह मिशन भारत की अंतरग्रहीय अनुसंधान क्षमता को एक नई दिशा देने वाला साबित होगा और विश्व स्तर पर देश की वैज्ञानिक साख को और मजबूत करेगा।