Ghode Ki Naal- क्या आप जानते हैं घोड़ों को क्यों पहनाई जाती है नाल ?

Ghode Ki Naal- घोड़े को लेकर अक्सर लोगों के दिमाग में ये बात आती है.जंगली घोड़ों को छोड़कर लगभग सभी घोड़ों में नाल लगाई जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर घोड़ों को नाल क्यों पहनाई जाती है और इसकी शुरुआत कहां से हुई थी. बता दें कि घोड़ों को अक्सर पक्की सड़कों पर चलना पड़ता है, जिससे उनके खुरों के घिसने का जोखिम बना रहता है.

हालांकि नाल को लेकर समाज में अंधविश्वास भी है. क्योंकि काफी लोग मानते हैं कि घोड़े का नाल घर में लगाने से विपत्तियां दूर होती हैं. माउंटेन क्रीक राइडिंग स्टेबल वेबसाइट कि एक रिपोर्ट के मुताबिक घोड़े की नाल का उपयोग काम करने वाले घोड़ों के खुर को स्थायित्व देने में मदद के लिए किया जाता है.

बता दें कि खुर नाखून के समान पदार्थ से बना होता है, जिसे केराटिन कहा जाता है. हालांकि खुर में एक नरम और कोमल आंतरिक भाग होता है, जिसे फ्राग या मेंढक कहा जाता है. जब घोड़े चलते हैं तो खुर स्वाभाविक रूप से घिस जाता है. इसलिए खुर पर नाल लगाने से इसे कम करने और फ्राग को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है.

घोड़े की नाल (Ghode Ki Naal) ज्यादातर मामलों में स्टील से बनी होती है, हालांकि इसके कुछ अपवाद भी हैं. घुड़दौड़ के घोड़े आमतौर पर एल्यूमीनियम की नाल पहनते हैं, क्योंकि वे हल्की होती हैं. वहीं कुछ ऐसे नाल भी हैं, जिन्हें घोड़े खुर या पैर की चोट की स्थिति में पहन सकते हैं. ये नाल रबर से बनी होती हैं. रबर की नाल घोड़े को चलने में अधिक नरम सतह और अधिक मदद देती है.

बता दें कि जंगली घोड़ों को नाल नहीं लगाए जाने के दो कारण हैं. वे उतनी कड़ी मेहनत या काम नहीं करते हैं जो एक पालतू घोड़ा करता है. वहीं खुरों के बढ़ने की तुलना में उनके खुर धीरे-धीरे घिस जाते हैं. वहीं उनके पास देखभाल करने वाला कोई नहीं है. वहीं ट्रेल राइड करने वाले घोड़ों को ‘हैक हॉर्स’ कहा जाता है. उनके लिए नाल अत्यंत महत्वपूर्ण है.

जब घोड़े ट्रेल वाले रास्तों में पक्की सतहों या कठोर जमीन पर चलते हैं, तो खुर बढ़ने की तुलना में तेजी से घिस सकते हैं. इससे घोड़े काम करने में असमर्थ हो सकते हैं. बता दें कि अच्छी तरह से देखभाल करने वाले घोड़ों में हमेशा नाल लगी होती है.

Ghode Ki Naal
Ghode Ki Naal

Ghode Ki Naal- कब से हो रहा इसका इस्तेमाल

Ghode Ki Naal- बता दें कि घोड़े की नाल की उत्पत्ति को लेकर कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिलते हैं. क्योंकि एक समय लोहा मूल्यवान धातु था. तब किसी भी घिसी-पिटी चीज को आमतौर पर दोबारा बनाया जाता था और इसका फिर से उपयोग किया जाता था. इसलिए इसका पुरातात्विक साक्ष्य मिलना मुश्किल होता है. हालांकि कुछ लोग इसका श्रेय ड्यूड्स को देते हैं.

लेकिन इसको साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं हैं. वहीं 1897 में लगभग 400 ईसा पूर्व के इट्रस्केन मकबरे में कांसे की बनी चार घोड़े की नालें मिली थी. जो स्पष्ट रूप से कील छेद वाली थी. कुछ इतिहासकारों का यह भी दावा है कि रोमनों ने 100 ईसा पूर्व के कुछ समय बाद खच्चर की नाल का आविष्कार किया था.

इसकी पुष्टि कैटुलस के संदर्भ से समर्थित है, जिनकी मृत्यु 54 ईसा पूर्व में हुई थी. हालांकि रोम में घोड़े की नाल और खच्चर की नाल के उपयोग के ये संदर्भ ‘हिप्पोसैंडल’ के लिए हो सकते हैं यानी चमड़े के जूते जो कील लगे घोड़े की नाल के बजाय लोहे की प्लेट से मजबूत होते थे.

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